Friday 2 July 2010

संगीतकार रामलाल - तुम तो प्यार हो

पंडित सुनील मुकर्जी प्रख्यात सरोद वादक हैं .जब वे बजाते हैं तो अन्यास ही आँखों में आंसू आ जाते है एवं  कंठ रुंध जाते हैं.  एक दिन वे एक राग बजा रहे थे उस दिन मेरे गुरु -भाई  मारुती भी वहीँ थे.गुरूजी ने हमलोगों के तरफ देख के पूछा बताओ क्या बजा रह हूँ ?मारुती ने मेरी तरफ देखा तो मैंने धीरे से कहा गुरूजी राग तो मुझे नहीं पता है पर इस राग पर एक गाना है"तुम तो प्यार हो सजाना " मारुती और गुरूजी दोनों हंस पड़े और साथ में मै भी . तब गुरूजी ने बताया ये राग मरू बिहाग है . 
घर आकर सबसे पहले इंटरनेट पे "तुम तो प्यार हो सजाना "इस गाना को ढूंढा . दोस्तों "सेहरा" फिल्म के इस गीत को संगीत से सवांरा है संगीतकार  रामलाल ने . व्ही ० शांताराम जब 'सेहरा'(1963) बना रहे थे तब बतौर संगीतकार रामलाल को चुना .रामलाल  एक महीने तक नये - नये म्यूजिक बनाते रहे और व्ही० शांताराम उन सभी कम्पोजिसन में से उन उम्दा  रचनाओं को चुना जो इस फिल्म में है  .इस फिल्म का सबसे पहले वो गाना सुनिए जिसे गया है लता जी और रफ़ी साहब ने जो मुझे बेहद पसंद है.




इस फिल्म के सभी गानों के धुन पहले बने और गीत बाद में लिखे गए .उन्होंने इस फिल्म में कई अनमोल रचनाओ का सृजन किया'पंख होती तो उड़ आती रे ' लता जी ने गा कर इस गीत को अमर कर दिया .वाइलिन ,जलतरंग, का मीठे पिस और लता जी कि आवाज हमें अचानक से आसमान में उड़ने लगती है





 रामलाल बहुत हीं उम्दा शहनाई एवं बांसुरी  वादक रहे हैं और और इन्होने कई संगीतकारों के लिये अपना शहनाई वादन किया है .इसी फिल्म में  रफ़ी कि आवाज में' तक़दीर का फ़साना जा कर किसे सुनाये ' गीत में शहनाई कि बिसाद भरी तान एवं  रफ़ी की आवाज दर्द का चादर पुरे जहन को ढाप लेते  है...




जी करता है दोस्तों इस फिल्म के सारे गीतों को सुनवाऊ. इस फिल्म में रामलाल ने एक से बढ़ कर एक संगीत रचे थे .लता और रफ़ी की आवाज़ में 'जा जा जा रे तुजे हम जन गए' सुन कर तो मन बिलकुल झूम उठता है .वहीँ हेमंत कुमार का गया ' न घर तेरा न घर मेरा' हमें चिंतन करने पर मजबूर कर देता है . तो आशा और साथियों का गया 'हम है नसे में तुम हो नसे में ' नसीला- नसीला समां बांध देता है
 'सेहरा' से पहले कि फिल्मो का जिक्र करे तो आर० सीo  बोराल , नौशाद , बसंत देसाई, सी० रामचंद्र आदि कई संगीतकारों  के साथ उन्होंने काम किया. 'मुगले आजम' ,'नवरंग', 'झाँसी कि रानी' और 'रानी रूपमती' सहित कई फिल्मो में  शहनाई और बांसुरी  वादन से फिल्मो के संगीत को मनमोहक बनाते रहे .सन 1944 के दौर में रामलाल बनारस से मुंबई आये .और किस्मत ने उन्हें पृथवी थियेटर के संगीतकार राम गांगुली से मिलाया और इसी मुलाकात के बाद ये राम गांगुली के सहायक बन गये. उन दिनों राम गांगुली राज कपूर की फिल्म आग(1948) में संगीत दे रहे थे सो रामलाल को भी इससे जुड़ने का मौका मिल गया .इस फिल्म के 'जिन्दा हूँ इस तरह से' गाने में पहली बार रामलाल ने बांसुरी बजायी थी .रामला की बजाई बांसुरी की पिस को सुनिए तो जरा 





दोस्तों उम्मीद है आप आनंद उठा रहे होंगे .अब रुख करते हैं रामलाल के आगे के सफ़र पर बसंत देसाई  फिल्म 'गूंज उठी शहनाई'(1959) का संगीत दे रहे थे और रामलाल उनके सहायक थे . फिल्म के गीतों में  बिस्मिल्ला खान साहब आपनी शहनाई का जादू  बिखेर रहे थे और उनके साथ रामलाल भी सहयोग कर रहे थे. इस फिल्म  के म्यूजिक को कई कैसे भूल सकता है एक-से-एक लाजबाब गाने .पर रामलाल का दिल इस फिल्म से टूट गया हुआ यूँ की  इस फिल्म में बिस्मिल्लाह खान से ज्यादा शहनाई  रामलाल ने बजाई थी पर इसका उचित श्रेय निर्माता विजय भट्ट ने उन्हें नहीं दिया  इस बात से  वे  इतने दुखी हुए की इस फिल्म को देखा तक नहीं.

फिल्म में संगीत देने का सिलसिला संतोषी की फिल्म तांगावाला से शुरू हुआ मगर अफ़सोस की यह फिल्म रिलीज नहीं हो सकी.आगे भी उन्होंने  कुछ फिल्मों में संगीत दिये जैसे 'नकाबपोश'(1956),'नागलोक'(1957),माया मछेंद्र(1960),राजमहल(1961),पर इन फिल्मो का संगीत उतने लोकप्रिये नहीं हो सके .
सेहरा के मनपसंद म्यूजिक देने के बाद एक बार फिर व्ही० शांताराम 'गीत गाया पत्थरों ने' में रामलाल को बतौर संगीतकार ले कर आये  और एक बार फिर अदभुत कम्पोजिसन का तोहफा नज़र किया रामलाल ने .इस फिल्म के सरे गाने एक से बढ़ कर एक थे .फिल्म का टाइटल सॉंग प्रसिद्ध शास्त्रीय गायिका किसोरी अमोनकर से गवाया .इसीस गीत को आशा और महेंद्र कपूर के स्वर में भी कम्पोज किया .हम आपके नज़र कर रहे है आशा और महेंद्र कपूर के आवाज़ में ये गाना.






इस फिल्म  में सी० एच० आत्मा द्वार गाये   'मंडवे तले गरीब के दो फूल खिल रहे ', और 'एक पल को मिला'को गवा कर सी० एच० आत्मा को चाहने वालो को एक सानदार तोहफा  है.मै इसी पसोपेस में हूँ की आखिर कौन सा गाना सुनाऊं.चलिए दोनों हीं सुनवा देता हूँ.









है न कमाल के ये गाने  .दोस्तों इस फिल्म के सारे गाने एक से बढ़ कर एक थे आशा का गया 'रात नवजवन झूमता समां' आशा का हीं'जाने वाले ओ मेरे प्यारे 'हो या आशा और महेंद्र कपूर का 'आइये पधारिये' से रामलाल ने अपने बेहतर संगीतकार होने को प्रमाणित किया है . इस फिल्म का सबसे लोकप्रिये गाना आशा जी का गया  'तेरे खयालो में हम' पहले लगभग हर रविवार रंगोली में सुनने को मिल जाता था.पर दुःख की बात है कि रामलाल को ज्यादा फिल्मे नहीं मिल पाई .और उनके कम्पोज किये गीत भी कम सुनाने को मिलते है . रामलाल अपने रचनाओं से हमें यूँ हीं याद आते रहेंगे.





        




Thursday 1 July 2010

दोस्तों आज से मै आपको झरोखा - दर्शन करवाऊंगा .
मै आप सबों  के लिए हर हप्ते अतीत के झरोके से कुछ  नायब किस्से ले कर आऊंगा .
 उम्मीद है आप मेरे साथ भरपूर आनद उठाएंगे .
धन्यवाद